Radio Urja
भारत की ऊर्जाधनी

सिंगरौली जिला मध्यप्रदेश के पूर्व में स्थित है। यहाँ प्राकृतिक संसाधनो की उपलब्धता एक ईश्वरीय देन है। सिंगरौली स्थित ऊर्जा संयत्र और विभिन्न उद्योग देश की आर्थिक उन्नति में सहायक हैं। हम गौरवान्वित होते हैं कि सिंगरौली हमारे देश के प्रगति में मील का पत्थर साबित हुआ है।

सिंगरौली एक औद्योगिक नगरी है। जिसमें स्थित उद्योगों से उत्सर्जित अपशिष्ट पदार्थ से वातावरण प्रदूषित होता है किन्तु उद्योगो का होना हमारे लिए , समाज एवं देश की समृद्धि के लिए परम आवश्यक है अतः उद्योगों से होने वाले प्रदुषण को निर्धारित सीमा तक रोक पाना ही सम्भव है और इसके लिए एक निर्धारित स्वीकृत मानक है जिसके उपचार के लिए उद्योग अनवरत प्रयासरत हैं। किन्तु घरेलु कचरे से होने वाले प्रदुषण का पुरे प्रदुषण में एक अहम भूमिका है जिसे नकारा नही जा सकता है |
प्रदुषण पूरे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक बड़ा खतरा है और यह स्थानीय संगठनो व समाज से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ के लिए गहन चिंता का विषय है। सिंगरौली में प्रदुषण मुख्यतः उद्योगो, वाहनो व घरेलु कचरे से फैलता है।

घरेलू कचरे से होने वाली पर्यावरण की छति को रोक पाना हमारे लिए संभव है और इस व्यवस्था को कायम करने में हम पूरी तरह सक्षम भी है । घरेलु कचरा सामान्यतः दो प्रकार के कचरों का मिश्रण होता है | वह जो की खुले वातावरण में छोड़ दिए जाने से स्वतः ही अपघटित हो जाता है जिसे हम जैविक या गीला कचरा कहते है | दूसरा जो की खुले वातावरण में स्वतः अपघटित नहीं होता या फिर लम्बे समय के बाद अपघटित होता है उसे अजैविक कचरा या सूखा कचरा कहा जाता है | इन कचरों का समुचित प्रबंधन नहीं किये जाने से वातावरण को अत्यन्त्य हानि होती है फलस्वरूप विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ तथा प्राकृतिक आपदाओ का सामना पुरे समाज को करना पड़ता है |

सिंगरौली एक औद्योगिक नगरी है। जिसमें स्थित उद्योगों से उत्सर्जित अपशिष्ट पदार्थ
से वातावरण प्रदूषित होता है किन्तु उद्योगो का होना हमारे लिए , समाज एवं देश की समृद्धि के
लिए परम आवश्यक है |

घरेलू कचरे से होने वाली पर्यावरण की छति को रोक पाना हमारे लिए संभव है और इस व्यवस्था को कायम करने में हम पूरी तरह सक्षम भी है । घरेलु कचरा सामान्यतः दो प्रकार के कचरों का मिश्रण होता है | वह जो की खुले वातावरण में छोड़ दिए जाने से स्वतः ही अपघटित हो जाता है जिसे हम जैविक या गीला कचरा कहते है | दूसरा जो की खुले वातावरण में स्वतः अपघटित नहीं होता या फिर लम्बे समय के बाद अपघटित होता है उसे अजैविक कचरा या सूखा कचरा कहा जाता है | इन कचरों का समुचित प्रबंधन नहीं किये जाने से वातावरण को अत्यन्त्य हानि होती है फलस्वरूप विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ तथा प्राकृतिक आपदाओ का सामना पुरे समाज को करना पड़ता है |

भारत के इतिहास के मुताबिक ईंधन के रूप में कोयले का इस्तेमाल 1771-72 में ही शुरु हो गया था और ब्रिटिश हुकूमत के दौरान ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने 1771 में दामोदर घाटी के रानीगंज में उत्खनन करना शुरु कर दिया था पर खपत न होने से विस्तार और रफ़्तार नहीं थी ।देश में 1853 में रेल की शुरुआत के बाद कोयला इसके संचालन के लिए प्राथमिक और एक मात्र ईंधन होने से इसकी खपत बढ़नी शुरु हुई और 1903 में टाटा स्टील सयंत्र और 1920 में हैदराबाद में हुसैन तापीय विद्युत सयंत्र(देश का प्रथम विद्युत सयंत्र ) के स्थापन्न ने जोर पकड़ा दिया ।आवश्यकता सामने आने से कोयला क्षेत्रों का चिन्हांकन होने लगा और सिंगरौली कोयला क्षेत्र भी सामने आया ।यह बात आजादी के आसपास और उससे पहले की थी ।
आजादी के बाद और शुरुआती दौर में देश में टाटा,बिरला,गोयनका,डालमिया, गोदरेज आदि एक्के दुक्के ही औद्योगिक घराने थे इनके अलावा एसीसी, युनीलीवर आदि विदेशी कम्पनियाँ थीं । ऐसे में उद्योंगो का विस्तार 1956 में नई उद्योग नीति बनने पर भी जोर नहीं पकड़ रही थी इसकी मुख्य वजह आबादी में उपभोग की आदत और खरचने की शक्ति थी ही नहीं ।हमारे देश में तब से आजतक सरकार के पास राजस्व संग्रहण का सबसे बड़ा माध्यम अप्रत्यक्ष कर रहा है और उसका सीधा सम्बंध खपत और विनिमय से ही है ।सामाजिक विकास और रोजगार के अलावा तकनीकी विकास के लिए भी कोष का बढ़ना जरुरी था ऐसे में औद्योगिक विकास और सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का बढ़ना आवश्यक हो गया था ।यूँ तो आंकड़े बताते हैं कि हमारे देश में दूसरी पंचवर्षीय योजना में GDP Growth rate 13% थी पर यह दर तो शून्य के सापेक्ष थी ।

पुनः हम मुद्दे की बात करें तो सिंगरौली में कोयला ,पानी और रेल ने उर्जा सयंत्र के लिए माकूल माहौल पैदा कर दिया ।जानकारों की मानें तो नेहरूजी के द्वारा 1954 में रिहन्द बांध की आधारशिला रखे जाने के समय जी डी बिरला और जेआरडी टाटा दोनों भारतीय उद्योगपति मौजूद थे और यहाँ उद्योग लगाए जाने के आह्वान पर बिरला जी की नजर और दूरदर्शिता ने यहाँ सन् 1962 में अल्युमीनियम सयंत्र बनाकर क्षेत्र में औद्योगिकरण को न्योता दे दिया ।किसी भी एल्यूमिनियम सयंत्र के स्मेल्टर युनिट में इलेक्ट्रिक फर्नेस ही होता है और जिसे निर्बाध विद्युत आपूर्ति आवश्यक होती ही है यानि कि बिना कैपटिव पॉवर प्लांट के सम्भव नहीं ।रेनूकूट चूंकि आज़ादी के पहले से ही रेलमार्ग से जुड़ा था और बोक्साईट का भण्डार तबके बिहार और अबके झारखंड में आसपास ही था इसलिए यह इकाई वहा स्थापित की गई ।बाद में सन् 1972 में रेनुसागर में अपना उर्जा सयंत्र भी स्थापित कर लिया । उस निर्बाध आपूर्ति के लिये विद्युत सयंत्र के लिये सबसे उपयुक्त जगह देश में तब सिंगरौली ही था जो आज भी है ।
यह शुरुआत आगे चलकर सिंगरौली और सोनभद्र को देश का बड़ा उद्योग क्षेत्र बना देगा किसी ने शायद उस समय सोंचा भी न होगा ।

February 28, 2022

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

X